क्या लिखू
आज मन बहुत उदास है
होने वाली कोई बात है
दिन भी बहुत ख़राब है,
सब कुछ उजड़ा उजड़ा है
फिर भी लगता अपना है
क्या लिखू कैसे लिखू
समझ नहीं आता है
सारी दुनिया लगती बेगानी
छाया हुआ पतझड़ है,
सब कुछ बिखरा बिखरा है,
लगता है खो जाओ कही
अँधेरे में
न कोई खोज पाए
गुम हो जाऊ किन्ही तंग गलियों में
सब कुछ गड़बड़ सा लग रहा है
लगता है ऐसे आ रहा है
कोई दबे पाँव
कौन है लगता है
यमराज तो नहीं है
जो आ गया हो लेने मुझे
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