दिवाली
दिवाली है रौशनी का त्यौहार
खुशियों की है बहार,
हर कोई है रौशनी में नहाया हुआ
काली रात में जगमग होती
सारी दुनिया
फिर भी कही है खाली पन
क्या है वो
कुछ लोगो की गरीबी
कहती है हमारी तो क्या
दिवाली क्या होली
हमरे लिए तो सब दिन
होते एक बराबर
क्या होली क्या दिवाली
कैसी बिडम्बना है
कुछ लोग तो बढ़िया दिवाली
है मनाते
और कुछ लोग रौशनी देखकर
खुश हो जाते जाते है
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