फिर छाया बसंत

सजी धरती आज फिर
पीली चुनरिया ओढ़कर,
हर तरफ छाई  है फूलो की महक
हर कोई खुश  है
आम की बोर देखकर
सूरज ने भी आखे खोली
सरसों भी फूली हुई है चारो और
आया सखी फिर से बसंत
कोयल की कूक है चारो ओर,
सब कुछ लगता कितना नया
फागुन खड़ा है  दरवाजे पर
सब पर है मस्ती छाई
और छाई है माँ सरस्वती  की
आराधना की  धूम
हर कोई नाच रहा है
ठण्ड से मिली राहत
आया सखी फिर से बसंत

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