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एक युग पुरुष

था सच्चा बेटा इस धरती का कर गया बड़े वो जिसके आगे दुनिया झुकती था उसका नाम विवेकानन्द जीना उसने है सिखलाया वरना  हम क्या क्या करते अपने लिए  तो सब जीते है पर जीना आये  दूसरो  काम था नाज जिसे अपनी धरती पर कर गया संसार  नाम वो है सबमे साहस  मानवता का  सिखला गया साहस का पाठ वो, ना  जात्ती पाती न उच नीच सब है बराबर इस  जहा में ऐसा पाठ  पढ़ाया  उसने देशप्रेम की ललक उठे सिखलाया की  कैसे हो नए समाज का सर्जन यहाँ काटो पर चलकर  भी उसने कर  दिया गर्व  से नाम अमर हे नाज हर भारतवासी को   क्यों न होते आब विवेकानंद छोटी सी आयु में ही कर गए वो नाम अमर अब हम सबकी है बारी कर जाये एक नए समाज का निर्माण यहाँ

कौन है वो

कौन है वो जिसका है इंतजार  खड़ा दरवाजे पर कौन किसकी है आहट दबे पाँव कोई आ रहा  है हुई  थोड़ी  सी हलचल आ गया  वो ये तो कोई अजीब सा इन्सान है किसे लेने  आया है  एक सांस टूटी और ले गया वो अजीब इन्सान एक ज्योति और छोड़ गया वो निर्जीव शरीर किसके लिए सिर्फ रोने के लिए एक मलाल रहा कुछ न कर पाए हम इस जिन्दगी में बेकार हो गया जीवन व्यर्थ की बातो में  अब  एक आस   आयेंगे फिर से इस जहा में कुछ के तो आसूं पूछ पाएंगे हम