नारी
नारी हू में
मुझमे है छमता,
फिर क्यों समझते है
कमजोर मुझे,
मैंने सबको चलना सिखाया,
सब कुछ भूल किया सब अर्पण
फिर भी क्यों हू में अबला
सहनशक्ति है मेरे अंदर
दुर्गा का रूप हू
फिर भी क्यों नहीं मानते
सब क्यों कहते है नारी तो
बर्बादी है
नारी न होती तो ये दुनिया न
होती
ये क्यों नहीं मानते है
आज हर जगह बदनाम हो रही
क्यों सब ऐसा काम कर रहे
मेरे अंदर भी है एक जान
ये क्यों नहीं जानते
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